... शराब नहीं...
मुझे शराबी अच्छा लगता है, शराब नहीं
पीते हैं वो मुझ पे नशा छाता है,
उनकी खुमारी मुझमें खुमार लाता है,
वे जब डगमगाते हैं पग मेरा डगमागता है,
आंख की लालियाँ कहती है कुछ मुझसे उनकी,
उनकी मगरूरियाँ मुझ पे जादू ढाता है,
मैं खड़ा देखता हूं उनको तो मुझे लगता है,
अनजानी कौन नशा मुझ में फिर जगता है,
बिन पिए ही शराब, शराबियों----
देखो नशा भी चढ़ता है--
इस्ट नाम की नशा में बोतल कभी न लगता है,
पल दो पल के लिए खुमार लाता है--
शराब आता है और चला जाता हैI
रंग लाएगी खुमारी, खुमार कभी ना टूटे,--
ईस्ट नाम की जाम जो पीते जाता हैII
रचना.. प्रेमचंद साव, कोलकाता 11.12.2005